November22 , 2025

    मिथिला में 16 अगस्त को धूमधाम से मनाई गई कृष्णाष्टमी

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    जन्माष्टमी और कृष्णाष्टमी के अंतर को समझना ज़रूरी : चंपानगर ड्योढ़ी की परंपरा आज भी जीवित

    पटना/पुर्णियां, 16 अगस्त 2025 शंखनाद टुडे
    जहाँ देशभर में श्रीकृष्ण जन्म के अवसर पर जन्माष्टमी मनाई जाती है, वहीं मिथिला में इसे परंपरागत रूप से कृष्णाष्टमी कहा जाता है। मान्यता के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म ऐसे दिन हुआ था जब उदयकाल में सप्तमी और रात में अष्टमी तिथि थी। गोकुल में प्रभात होते-होते अष्टमी रही और तत्पश्चात नवमी का आगमन हुआ। इसी कारण मिथिला में लोग उदयव्यापिनी अष्टमी को मानकर व्रत-पूजन करते हैं।

    जन्माष्टमी और कृष्णाष्टमी का अंतर

    जन्माष्टमी : वह दिन जब मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि पड़ती है।

    कृष्णाष्टमी : वह दिन जब सूर्योदय काल में अष्टमी हो।
    यदि इस काल में नवमी तिथि का प्रवेश हो, बुधवार हो या रोहिणी नक्षत्र का संयोग बने तो इसे अति शुभ माना जाता है।

    मिथिला की आस्था और परंपरा

    मिथिला में इस दिन न केवल कृष्ण जन्मोत्सव, बल्कि योगमाया दुर्गा (कात्यायनी) के जन्म को भी भाई-बहन का उत्सव मानकर मनाया जाता है। यहाँ पूतना की भी पूजा होती है, जिसे श्रीकृष्ण ने मातृत्व का पद दिया था।

    चंपानगर ड्योढ़ी में प्रतिवर्ष प्रातःकाल अष्टमी पर मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा कर पूजा-अर्चना की जाती है।

    ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

    पुर्णियां, चंपानगर ड्योढ़ी में कृष्णाष्टमी पूजा की शुरुआत 1885 ई. में राजमाता सीतावती देवी (मैंयांजी) ने की थी। तब से आज तक यह पूजा अबाध रूप से परिवार के सदस्यों द्वारा ही की जाती रही है।

    विशेष उल्लेखनीय नाम :

    राजमाता सीतावती देवी, राजा कीर्त्यानंद सिंह, राजकुमारी धर्ममाया देवी, राजमाता प्रभावती देवी, राजकुमार तारानंद सिंह, राजकुमार विमलानंद सिंह, गिरिजानंद सिंह, विनोदानंद सिंह, रमानाथ झा, पूनम सिंह और वरुणानंद सिंह।

    पूजन झांकी की विशिष्टता

    यहाँ की झांकी में संपूर्ण कृष्ण-लीला की झलक दिखाई देती है। मूर्तियों में –
    बलराम, सुभद्रा, रुक्मिणी, गरुड़ पर चतुर्भुज कृष्ण, सत्यभामा, रोहिणी, वसुदेव, नवजा

    त कृष्ण, देवकी, योगमाया दुर्गा, यशोदा, नंद महाराज और पूतना सहित सभी पात्र शामिल हैं।

    मिथिला की कृष्णाष्टमी न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह क्षेत्रीय आस्था, सांस्कृतिक परंपरा और ऐतिहासिक विरासत का प्रतीक भी है। जहाँ देशभर में लोग कृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में मानते हैं, वहीं मिथिला की आस्था उदयकालीन अष्टमी को ही श्रीकृष्ण का वास्तविक जन्मोत्सव मानती है।

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