June19 , 2025

    राजनीतिक विश्लेषण : मुस्लिम नेतृत्व पर मोदी का बयान—सवाल कांग्रेस से या संदेश अपनी पार्टी के लिए भी?

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    सैयद हबीब, हिसार। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा के हिसार में एयरपोर्ट उद्घाटन के मंच से जो सवाल कांग्रेस से पूछा—“अगर मुसलमानों से इतनी हमदर्दी है तो कांग्रेस ने आज तक किसी मुस्लिम को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष क्यों नहीं बनाया?”—वह केवल एक Rhetorical तीर नहीं था, बल्कि वह भारतीय राजनीति में बहुसंख्यकवाद बनाम अल्पसंख्यक प्रतिनिधित्व की बहस को एक बार फिर तेज़ करने की रणनीति के तौर पर देखा जा सकता है।
    लेकिन क्या इस सवाल में एक आत्मदर्शी संकेत भी छुपा है? क्या यह संकेत है कि आने वाले समय में भाजपा खुद अपने भीतर भी मुस्लिम नेतृत्व को लेकर विमर्श या प्रयोग कर सकती है?
    संदेश में छिपा संकेत: BJP के भीतर अल्पसंख्यक नेतृत्व की गुंजाइश?
    प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान महज विपक्ष की आलोचना नहीं बल्कि सांकेतिक राजनीति (symbolic politics) की दिशा में एक बड़ा कदम भी हो सकता है। भाजपा बार-बार इस बात का ज़िक्र करती है कि उसने एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति बनाया। यह ऐतिहासिक कदम भाजपा के मुस्लिम समाज के साथ moral alignment का दावा करता है। ऐसे में क्या यह मुमकिन है कि मोदी का यह बयान भविष्य की किसी प्रतीकात्मक नियुक्ति की भूमिका तैयार कर रहा हो—जैसे कि पार्टी के किसी मंच पर मुस्लिम चेहरे को प्रमुखता देना?
    वक्फ कानून, पंचर, और ‘पीड़ित मुस्लिम’ की राजनीति
    प्रधानमंत्री का वक्फ कानून और मुसलमानों के “साइकिल पंचर बनाने” वाले बयान से यह स्पष्ट होता है कि भाजपा अल्पसंख्यक समुदाय के भीतर सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन का ज़िक्र कर उसे कांग्रेस की तुष्टिकरण नीति से जोड़ने की कोशिश कर रही है। यह बयान भाजपा के उस राजनीतिक नैरेटिव को मजबूत करता है जिसमें वह कहती है कि कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक समझा, उन्हें केवल धार्मिक पहचान दी लेकिन वास्तविक सशक्तिकरण नहीं किया।
    UCC और धर्म आधारित आरक्षण: धर्मनिरपेक्षता की नई परिभाषा
    मोदी का बयान कांग्रेस द्वारा “धर्म के आधार पर आरक्षण” देने और यूनिफॉर्म सिविल कोड के विरोध को लेकर भी तीखा था। इस पंक्ति का उद्देश्य साफ है—कांग्रेस को संविधान विरोधी और विभाजनकारी ताकत के रूप में प्रस्तुत करना। वहीं दूसरी ओर, भाजपा UCC जैसे मुद्दों पर अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता और समान नागरिक अधिकारों के एजेंडे को दोहरा रही है।
    विकास की ओट में विचारधारा की रचना
    हिसार-अयोध्या फ्लाइट, एयरपोर्ट का विस्तार और हवाई चप्पल पहनने वालों को हवाई जहाज़ में बिठाने का सपना—ये सब कुछ सपनों के भारत की तस्वीर बनाते हैं। लेकिन इस विकास के फ्रेम में जब अल्पसंख्यक राजनीति के तीखे शब्द जोड़े जाते हैं, तो यह विकास + विचारधारा का मिलाजुला पैकेज बन जाता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा 2024 के चुनावी नैरेटिव को केवल इंफ्रास्ट्रक्चर तक सीमित नहीं रखेगी, बल्कि इसे विचारधारात्मक मुद्दों के साथ जोड़ेगी।
    तो क्या यह कांग्रेस पर हमला था या भाजपा की ओर से कोई नई भूमिका का ट्रेलर?
    मोदी के बयान का विश्लेषण करें तो एक साथ कई सतहों पर यह काम करता है—
    कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करना—ताकि वह अपने सेक्युलरिज़्म को व्यावहारिक रूप से साबित करने के लिए मजबूर हो।
    मुस्लिम समाज को संबोधित करना—कि भाजपा ही असल में उन्हें वास्तविक समानता और अवसर दे सकती है।
    अपनी पार्टी के भीतर एक नई सोच की शुरुआत—जो भविष्य में किसी प्रतीकात्मक मुस्लिम नेतृत्व की राह खोल सकती है।
    भाजपा के लिए यह रणनीतिक बिंदु है, कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय
    राजनीतिक दृष्टि से देखा जाए तो मोदी का यह बयान दोतरफा खेल है। एक तरफ़ विपक्ष को असहज करता है, दूसरी तरफ़ भाजपा को एक ऐसी विचारधारा में ले जाता है, जिसमें वह ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारे को राजनीतिक नियुक्तियों के स्तर पर भी लागू करने का दावा कर सके।
    क्या भविष्य में भाजपा किसी मुस्लिम नेता को संगठनात्मक शीर्ष पर जगह देगी? यह कहना जल्दबाज़ी होगा, लेकिन इतना तय है कि प्रधानमंत्री ने विचार का बीज जरूर बो दिया है।

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