प्रस्तुतिः प्रतुल पराशर
मध्य प्रदेश की राजनीति एक बार फिर उस चौराहे पर खड़ी है जहाँ नेतृत्व परिवर्तन के संकेत हैं, परंतु राह स्पष्ट नहीं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चल रहा मंथन न केवल संगठन की आंतरिक राजनीति को उजागर करता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि आने वाले वर्षों में पार्टी राज्य में किस दिशा में आगे बढ़ेगी।
राजनीतिक पृष्ठभूमि: नेतृत्व की तलाश
प्रदेश में भाजपा ने पिछले चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल किया था और अब जब पार्टी केंद्र में भी सशक्त होकर लौटी है, तो संगठनात्मक मजबूती और समन्वय की दृष्टि से नए प्रदेश अध्यक्ष का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है। वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा (सांसद) ही हैं और नए चेहरे की तलाश ज़ोरों पर है। संगठनात्मक चुनाव हो चुके हैं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व अब तक निर्णायक घोषणा नहीं कर पाया है।
विचारधारात्मक व व्यावहारिक मंथन
भाजपा के भीतर दो स्पष्ट प्रवृत्तियाँ उभरती दिख रही हैं:
-
अनुभवी बनाम युवा नेतृत्व – एक वर्ग चाहता है कि अनुभवी नेताओं जैसे नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव या भूपेंद्र सिंह में से किसी को नियुक्त किया जाए। दूसरी ओर, कुछ नेता ऐसे चेहरों की मांग कर रहे हैं जो अपेक्षाकृत युवा हों, संगठन में ऊर्जा भर सकें और भविष्य में मुख्यमंत्री पद के लिए भी प्रासंगिक बन सकें।
-
केंद्रीय बनाम स्थानीय संतुलन – नड्डा, अमित शाह और मोदी जैसे केंद्रीय नेता चाहते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा हो जो केंद्र की नीतियों का राज्य में ज़मीन तक क्रियान्वयन करवा सके। वहीं राज्य के नेता चाहते हैं कि अध्यक्ष उनके साथ समन्वय बिठा सके, न कि सत्ता की प्रतिस्पर्धा पैदा करे।
संभावित चेहरे: एक तुलनात्मक दृष्टि
नाम | विशेषता | संभाव्यता की स्थिति |
---|---|---|
नरोत्तम मिश्रा | पूर्व गृह मंत्री, मीडिया फ्रेंडली, मजबूत वक्ता | उच्च |
गोपाल भार्गव | वरिष्ठ विधायक, अनुभव संपन्न | मध्यम |
भूपेंद्र सिंह | संगठन व सरकार दोनों में तालमेल, केंद्र का विश्वास | मध्यम-उच्च |
लाल सिंह आर्य / कुलस्ते | दलित/आदिवासी चेहरा, सामाजिक समीकरण को साधने वाला विकल्प | प्रतीक्षारत विकल्प |
वर्तमान देरी के कारण
-
प्रधानमंत्री की व्यस्तता: भोपाल में हालिया यात्रा, फिर प्रशिक्षण शिविर।
-
संतुलन साधने की चुनौती: संगठन, सरकार, जातीय समीकरण और राजनीतिक महत्वाकांक्षा को एक साथ साधना चुनौतीपूर्ण है।
-
असंतोष का दबाव: कई विधायकों और कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक तौर पर पार्टी और सरकार से नाराज़गी जताई है। नया अध्यक्ष इन नाराज़ कार्यकर्ताओं को फिर से जोड़ सके, ऐसा होना चाहिए।
भविष्य की दिशा
अब जब 14–16 जून को पार्टी का प्रशिक्षण शिविर होने जा रहा है, संभावना है कि उसके बाद ही नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा की जाएगी। यह नियुक्ति केवल पद भरना नहीं बल्कि 2028 के विधानसभा चुनावों की नींव डालने जैसा कार्य होगा।
मध्य प्रदेश भाजपा नेतृत्व परिवर्तन की दहलीज़ पर खड़ी है, लेकिन हर निर्णय संगठनात्मक संदेश, कार्यकर्ता संतुलन, और सत्ता के समीकरणों से जुड़ा है। प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव केवल व्यक्ति चयन नहीं, बल्कि भाजपा की राज्य में दीर्घकालिक रणनीति को परिभाषित करेगा। यदि भाजपा संगठनात्मक मजबूती, युवा ऊर्जा और संतुलित नेतृत्व चाहती है, तो किसी नई पीढ़ी के संयमी चेहरे का चयन सबसे उपयुक्त होगा।