ब्रुसेल्स (बेल्जियम)।
यूरोप की धरती पर भारतीय आस्था और लोकसंस्कृति का अनुपम संगम उस समय देखने को मिला जब बेल्जियम में बसे बिहार-झारखंड प्रवासी समुदाय ने पूरे उत्साह और श्रद्धा के साथ छठ पूजा 2025 का आयोजन किया। यह पर्व सूर्य देवता और छठी मइया की आराधना का प्रतीक है, जो न केवल धार्मिक अनुष्ठान है बल्कि मानव और प्रकृति के पवित्र संबंध की अभिव्यक्ति भी है।
25 से 28 अक्टूबर तक चले इस चार दिवसीय पर्व ने न केवल भारतीय मूल के लोगों को एक साथ जोड़ा बल्कि बेल्जियम की भूमि पर भारतीय संस्कृति की उजली छटा भी बिखेरी। इस आयोजन में बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रवासी परिवारों ने पारंपरिक वेशभूषा, लोकगीतों और विधि-विधान के साथ भक्ति का अद्भुत वातावरण निर्मित किया।
छठ पूजा का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
छठ पर्व का मूल भाव सूर्य उपासना और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता से जुड़ा है। सूर्य को जीवनदायिनी शक्ति माना गया है — जो ऊर्जा, प्रकाश और स्वास्थ्य का स्रोत है। छठ पर्व में श्रद्धालु सूर्य की आराधना करते हुए जल, वायु, अग्नि और पृथ्वी जैसे प्राकृतिक तत्वों के प्रति आभार प्रकट करते हैं। यह पर्व शुद्धता, संयम, त्याग और आत्मानुशासन की मिसाल है।
माना जाता है कि छठी मइया (उषा देवी) संतान-सुख, स्वास्थ्य और समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी हैं। व्रत रखने वाली महिलाएँ न केवल अपने परिवार की मंगलकामना करती हैं, बल्कि पूरे समाज की सुख-शांति की प्रार्थना भी करती हैं।
छठ पर्व की शुरुआत ‘नहाय-खाय’ से होती है, जब भक्त स्नान कर सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन ‘खरना’ का आयोजन होता है, जिसमें निर्जला व्रत के बाद सूर्य देव को गुड़ की खीर, रोटी और फल अर्पित किए जाते हैं। इसके बाद दो मुख्य अनुष्ठान — संध्या अर्घ्य (अस्ताचलगामी सूर्य को) और उषा अर्घ्य (उदयमान सूर्य को) अर्पित किए जाते हैं। इस दौरान भक्तजन जलाशयों में खड़े होकर दीपक और सूप में सजे फल-फूल अर्पित करते हैं।
बेल्जियम में छठ पूजा – गंगा घाट की अनुभूति यूरोप में
बेल्जियम में इस वर्ष का आयोजन विशेष रूप से भव्य रहा।




जब श्रद्धालु पारंपरिक वस्त्रों में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दे रहे थे, तो दृश्य मानो पटना, भागलपुर या देवघर के घाटों जैसा प्रतीत हो रहा था।
सूपों में सजाए गए गन्ने, केले, दीपक और ठेकुआ की सुगंध ने प्रवासी भारतीयों को अपने देश की मिट्टी से भावनात्मक रूप से जोड़ दिया।
आयोजन में अखिल सिंह, मनीष मृदुल, ललित कुमार सिंह, पूर्णानंदु ठाकुर, आनंद सिंह और प्रकाश रंजन राय ने मुख्य भूमिका निभाई। साथ ही विशाल कुमार, चंद्रभानु कुमार और आनिश सिंह ने आयोजन को सफल बनाने में अहम योगदान दिया। भारत के दूतावास के प्रतिनिधियों की उपस्थिति ने इस आयोजन की गरिमा को और बढ़ाया।
पर्यावरण और संस्कृति का संगम
इस बार के आयोजन की सबसे बड़ी विशेषता रही — पर्यावरण-संवेदनशीलता। सभी अनुष्ठान प्राकृतिक सामग्रियों जैसे बांस, केले के पत्ते, मिट्टी के दीये और जैविक प्रसाद के साथ पूरे किए गए। प्लास्टिक के उपयोग से परहेज़ और जल स्रोतों की स्वच्छता का ध्यान रखकर आयोजकों ने छठ पर्व के मूल भाव — “प्रकृति की पूजा” — को सच्चे अर्थों में जीवंत किया।
भावनाओं का पर्व
एक आयोजक ने कहा —
“छठ पूजा हमारे लिए सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि यह वह डोर है जो हमें हमारी जड़ों, संस्कृति और परिवार से जोड़े रखती है। बेल्जियम में रहकर भी जब हम छठ मनाते हैं, तो हमें अपने गाँव, अपने घाट और अपने घर की याद ताज़ा हो जाती है।”
भक्ति और एकता की झलक सोशल मीडिया पर
कार्यक्रम की फोटो, वीडियो और मुख्य झलकियाँ समुदाय के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर साझा की गई हैं, जिनमें बेल्जियम में बसे भारतीयों की भक्ति, सामूहिकता और सांस्कृतिक गौरव की झलक देखी जा सकती है।
छठ पूजा का सार यही है — सूर्य की उपासना के माध्यम से जीवन में प्रकाश, पवित्रता और संतुलन लाना।
बेल्जियम में मनाया गया यह पर्व साबित करता है कि चाहे दूरी कितनी भी हो, भारतीय संस्कृति और आस्था की जड़ें हर दिल में गहराई से बसी हैं।



